एक रोज़ लखनऊ सेक्रेटेरियट के फ़ाईलों और सरकारी दस्तावेज़ों को चूहों ने कुतर डाला। फ़ाइलों में यू पी के सड़कों और अहम मार्गो की रूपरेखा का लेखा जोखा था जो की रातों–रात नष्ट हो गया। उम्मीद लगाई जा रही थी की इससे सरकार को करोड़ों का नुक़सान पहुँचा।उपर से नीचे तक के सभी अफ्सरों की क्लास लग गई और वह चपरासी जो फ़ाइलों को आलमारी में लॉक करना भूल गया था, उसकी नौकरी ख़तरे में पड़ गई।
जहाँ फ़ाईलों की दशा काफ़ी कुछ हमारे यहाँ के सड़कों सरीखी हो गई थी वहीं चूहों का आतंक लखनऊ के वासियों के सर चढ़कर बोल रहा था।
कुछ महिलाओं अपनी सखियों से शिकायत करती पाई गईं कि किस तरह से चूहों ने उनकी महँगी साड़ी का सत्यानाश कर दिया। लोगों ने कमर कस ली की चूहों से निजात पाकर ही दम लेंगे। अचानक से चुहे मारने वाली दवा की डिमांड में इज़ाफ़ा हुआ और कुछ लोगों में कुत्तों की जगह बिल्लियाँ पालने का शौक़ जाग उठा।
एक बार धोबी से इस्तरी करते वक़्त मंत्री जी की क़मीज़ जल गई तो उसने तुरंत चूहों पर आरोप मढ़कर अपनी नौकरी बचाई।
इन्हीं गतिविधियों के बीच एक अखबारी खबर लोगों को गुदगुदा गई।
दरअसल हुआ यूँ कि कुछ लोग चाय संग चर्चा पर बैठे थे कि सुबह की अख़बार एक महानुभाव के हाथ लग गई।
अख़बार की हेडलाइन थी ‘चूहे पैसे चबा गए!’
महानुभाव के मित्रों ने कहा-आगे पढ़ो क्या लिखा है।
महानुभाव ने चाय की चुस्की लेते हुए सुनाना शुरू किया – जैसा की ज्ञात होगा कि ढाई साल पहले एल डी ए ने कुछ स्कीम निकाली थी कि ग़रीबी रेखा से नीचे के लोगों को आवेदन भरने पर लाटरी के ज़रिये मकान मुहैया करवाया जाएगा, सो ढाई साल बाद ग़रीबों को इसका लाभ न मिलने पर काफ़ी हंगामा हुआ जिसके बाद विपक्ष की माँग के बाद नगरीय विकास मंत्री और एल डी ए के दफ़्तर और ठिकानों पर सी बी आई का छापा पड़ा। चार घंटे की पूछताछ और तलाशी के बाद सी बी आई की टीम को कोई सुराग हाथ नहीं लग सका। पता नहीं चल पाया की हज़ारों की संख्या में मकान आवंटन का पैसा आख़िर गया कहाँ? इतने में सी बी आई के आला अफ़सर का बयान आया कि शायद चूहे पैसे खा बैठे!
हाहाहा..ये तो सच की घटना है ।
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The motive of story is excellent but it’s too blunt on the system .
A real life true pain story which anyone can find anywhere in india because these rats are everywhere in india
Devesh Sharma
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