Ghazal
थी चाँदनी में शब धुली
था चाँद भी शबाब पर
महफ़िल सजी थी तारों की
धुंधले से आसमान पर
मेरी नज़र लगी रही
थी चाँद पर किताब पर
उनकी मचलती याद थी
इस जज़्बाए कलाम पर
यूँ टकटकी लगी रही
आई न नींद रात भर
कोई न ज़ोर चल सका
एहसासों के तूफ़ान पर
तुम्मको सुनाएँ हाले दिल
आके मिलो जो बाम पर
मंजरी