हिन्दी कविता
मुँडेर पर आ बैठी एक मैना
न जाने क्या चाहती है वो कहना
है बेचैन वो बिलकुल अकेली
नहीं साथ कोई सखा-सहेली
अचानक कहीं से पा गई वो एक तिनका
जिन्हें जोड़ बनाएगी वो घोंसला अपने मनका
हिन्दी कविता
मुँडेर पर आ बैठी एक मैना
न जाने क्या चाहती है वो कहना
है बेचैन वो बिलकुल अकेली
नहीं साथ कोई सखा-सहेली
अचानक कहीं से पा गई वो एक तिनका
जिन्हें जोड़ बनाएगी वो घोंसला अपने मनका