Poem/song

कभी अपने काम से फ़ुर्सत पा जाना

तो मिला लेना फ़ोन

ज़रूरी मेल टाइप करने के बीच

लिख देना मीठे दो बोल

फ़ाइलें पढ़ने से फ़ुर्सत मिले

तो पढ़ लेना मेरा मन

मीटिंगें कभी ख़त्म हों

तो हम बैठें कहीं संग

मेरी आवाज़ को बना लेना

अपना रिंगटोन

मेरे बर्थडे को बनाना

फ़ोन का पास कोड

अपने वाल फ़्रेम पर सजाना

मेरी मुस्कान

कॉफ़ी की चुस्कियों पर

ले लेना मेरा नाम

काम के बोझ से थक जाना

तो गुनगुना लेना कोई धुन

कभी मेज़ पर रखे गुलदस्ते से चुराना

फूलों की सुगंध

कभी सुन लेना झरोखों से

आती कोई मीठी दस्तक

मेरे दिल की सदा सुनाई देगी

तुम्हारी नजर होगी जहाँ तक

अगर कभी अकेले में होना

तो मुझे पास बुला लेना तुम

काम की धुन में न तुम कहीं हो

जाना गुम

याद रखना तुमसे दूर मगर

तुम्हारे दिल के नजदीक हैं हम

वो फ़ासले फ़ासले कहाँ

जब दिल धड़कते हो संग

Nazm

चादर

जब पहाड़ों पर बिछती है बर्फ़ चादर सी

तब तन से आ लिपटती है गर्म चादर सी

कि न रही अब लाज की फ़िकर भी

ऐसी होती है अहसास नर्म चादर की

जब कोई चादर किसी गद्दे पर है जा पड़ती

तब लगती है बिसात उसकी संगेमरमर सी

जब बदलती है वो उसपर करवट सी

तब पड़ती है उसपर रेश्मी सिलवट सी

जब रखती है तकिये पर वो सर अपनी

तब लगती है उसकी ज़ुल्फ़ बादल सी

सोई रहती है वो अंजान बेख़बर सी

न परवाह उसे किसी आहट-सरसराहट की

जब आसमानों पर चाँदनी जाती है बिखर सी

तब याद आती है ग़ज़ल किसी शायर की

शान में क्या कहें उस मक़बूल पेंटर की

जिसने तराशा ये मुकम्मल समा उसके हुनर की

जब चादर ख्वाजा के दर पर है जा पड़ती

तो जैद की तक़दीर जाती है सँवर सी

तब खुल जाती हैं किवाड़ें जन्नत की

और होती है कुबूल धागा-ए-मन्नत भी