अब न आतंक होगा न आतंकवादी होगा
न कोई मुसलमान न हिन्दुवादी होगा
न वो काला होगा न गोरा
न किसी के पास ज़्यादा होगा न थोड़ा
न क़ौमी दीवार होगी
न आपस में रार होगी
न जात होगी न पात होगी
न ही मिलने की बात होगी
न ख़ुशबू गुलाबों में होगी
नूर सब नक़ाबों में होगी
गलियाँ वीरान होंगी
लबरेज़ श्मशान होंगी
हर लब पर सवाल होगा
हर खून का रंग लाल होगा
न भाषा होगी न भाषण होगा
न सत्ता होगी न शासन होगा
न रीति होगी न रिवाज होगा
न कोई तख्तोताज होगा
न कोई क़ैदी न गुलाम होगा
सब एक समान होगा
सुबह भी होगी रात भी होगी
बादल भी होंगे बरसात भी होंगी
फूल भी महकेंगे
जंगल भी चहकेंगे
परों की ऊँची उड़ान होगी
चारों ओर खुला आसमाँ होगा
सन्नाटे से फिर एक आवाज होगी
ज़िन्दगी फिर से आज़ाद होगी
एक सुंदर सवेरा होगा
पर न तेरा होगा न
समा भी होगा नज़ारे भी
पर न देखने वाली आँखें होंगी
कुदरत फिर से अपने सुर में गाएगा
और देखकर फ़रिश्ता मुस्कुराएगा