अब न आतंक होगा न आतंकवादी होगा
न कोई मुसलमान न हिन्दुवादी होगा
न वो काला होगा न गोरा
न किसी के पास ज़्यादा होगा न थोड़ा
न क़ौमी दीवार होगी
न आपस में रार होगी
न जात होगी न पात होगी
न ही मिलने की बात होगी
न ख़ुशबू गुलाबों में होगी
नूर सब नक़ाबों में होगी
गलियाँ वीरान होंगी
लबरेज़ श्मशान होंगी
हर लब पर सवाल होगा
हर खून का रंग लाल होगा
न भाषा होगी न भाषण होगा
न सत्ता होगी न साशन होगा
सुबह भी होगी रात भी होगी
बादल भी होंगे बरसात भी होंगी
फूल भी महकेंगे
जंगल भी चहकेंगे
सन्नाटे से फिर एक आवाज होगी
ज़िन्दगी फिर से आज़ाद होगी
समा भी होगा नज़ारे भी होंगे
पर न देखने वाली आँखें होगी
True word in poem , it’s true feeling and can be happened if we all do not care of our nature .
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लाज़वाब !!👌👌
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