गजल
दो चाहने वाले थे
दोनों में सच्ची उल्फत
मिलते थे रोज़ाना वो
जैसे दरिया से सागर
फिर उनकी बस्ती में था
ऐसा फैला एक मंजर
एक बीमारी से सारे
गिर पड़ते एक एक कर
सारे सहमें सहमें थे
सबमें था मरने का डर
दोनों प्रेमी को लगता
अच्छा हो हम जाँए मर
क्या हो फिर वो मर जाए
क्या हो हम बच जाएँ गर
तन्हा से मरना बेहतर
क्या होगा तन्हा जीकर