यह जिस्म एक किराए का मकान है
एक ज़मीन है जहाँ हम मेहमान हैं
कुछ पल का आसरा है
हाथों से फिसलती जान है
हम समझते ज़मीन को धूल हैं
यही हमारी भूल है
आत्मा अमर शरीर नश्वर
बाक़ी सब फ़िज़ूल है
शरीर पर जो खर्च है
सब व्यर्थ है
आत्मा को भोग लगाओ
यही परम सुख है
खुदा न हमें आबाद किया
हमने ज़मीन को बर्बाद किया
औरों का हक़ छीन
ये कैसा खड़ा फ़साद किया
धरती कहती है पुकार के
जाना मेरे क़र्ज़ उतार के
क्या मिला तुझको इंसान
औरों का बिगाड़ के!
👌👌👌👌
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