पहले AC नहीं हुआ करते थे
पर अब गर्मी ज़्यादा लगती है
पहले सुविधाएँ कम थी
अब कमी ज़्यादा लगती है
पंगत में खाने का मजा बेहिसाब था
वो खाना तो होटलों से भी लाजवाब था
मुँह से ज़्यादा क़मीज़ पर होते थे जिनके दाग़
याद आता है अब भी बचपन के उन आमों का स्वाद
मम्मी पापा का करते थे हम जितना ख़ौफ़
नाना-नानी के घर में अपना ही चलता था रौब
नानी-दादी के क़िस्से सुन कल्पना उड़ान भरने लगी
हवाई सफ़र की सुविधा है पर दूरियाँ अब बढ़ने लगीं
महाभारत और रामायण सुन-सुन कर बड़े हुए
नई पीढ़ी के संस्कार दिखते हैं सब धरे हुए
दूरदर्शन के गिने-चुने कार्यक्रमों से मन जाता था बहल
आजकल के लोग तो बस ख़ाली चैनल रहे बदल
दवा इलाज की कमी नहीं है फिर भी रोगी ज़्यादा हैं
बाज़ारें लैस सामानों से और उनके भोगी ज़्यादा हैं
गली-मोहल्ला, रिश्ते नाते थे सुख -दुख के भागीदार
रिश्तों की मिठास खो गयी अब हर रिश्ता बन बैठा व्यापार
बड़े चाव से देहरी पर हम गन्ने चूसा करते थे
बिना गिनती किये हुए रसगुल्ले ठूँसा करते थे
पक्की दोस्ती थी मेरी बहती नाक वाले राजू से
मेरी नाक भी बह ज़ाया करती थी आजू-बाजू से
पहले संयुक्त परिवार थे अब अकेलापन ज़्यादा है
वक्त नहीं मिलता था पहले अब पागलपन ज़्यादा है
सुख-साधन की कमी थी फिर भी मन लग जाता था
किसी चीज की कमी नहीं अब फिर भी मन घबराता है
गोरा काला, जाति-धर्म का भेद तो हमने न जाना
अब जितनी नफ़रत कभी न देखी है हमने न सुना
कहाँ गए वो दिन जब बच्चियाँ आँगन बेख़ौफ़ खेला करती थी
सच कहती हूँ दोस्तों अब वो बात पहले वाली रही नहीं
चंदा मामा से मेरी जब हो ज़ाया करती थी अनबन
हो सके तो लौटा दो मुझको मेरा वो भोला बचपन