शहर के जाने माने व्यवसायी के बेटे का पाँचवा जन्मदिन था। इस सुअवसर पर उन्होनें कई नामी ग्रामी हस्तियों को दावत पर बुलाया था। जहाँ एक तरफ़ पुरुष जाम छलकाते हुए गुफ़्तगु में तल्लीन थे तो इस मामले में महिलाएँ भी कहीं पीछे नहीं थीं। बच्चों के लिए जादू का आयोजन कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था। गोलगप्पे और चाट के स्टालों पर विशेष रूप से भारी भीड़ थी। डी जे के गानों पर बच्चे, बूढ़े और व्यस्क थिरकते नज़र आ रहे थे।
मोहल्ले का धोबी रामस्वरूप अपने परिवार संग बाज़ार जा रहा था कि उनकी नज़र उस भव्य आयोजन पर पड़ी। वे बाहर से ही आयोजन का आनंद लेने लगे। रामस्वरूप और उसकी पत्नी बख़ूबी जानते थे कि कार्यक्रम में शामिल होना उसकी क़िस्मत में नहीं था पर उसके चार साल के बेटे को इसकी कहाँ समझ थी; वह कार्यक्रम में शरीक होने की ज़िद कर बैठा)!माँ पिता के लाख बहलाने-फुसलाने पर भी कि वे बाज़ार से
उसके लिए उसके मनपसंद खिलौने ख़रीद देंगे, वह न माना।उसके बाल हट के आगे रामस्वरूप की एक न चल सकी!
राम स्वरूप को एक युक्ति सूझी। उसने अपनी पत्नी से कहा – “साहब और उनके परिवार के इस्तिरी किये हुए कपड़े किस दिन काम आएँगे!
राम स्वरूप की पत्नी ने कहा – अरे यह ग़लती कभी मत करना! यहाँ सारा मोहल्ला हमें पहचानता है।
रामस्वरूप ने अपनी पत्नी की बातों पर जरा भी ध्यान न दिया और सपरिवार सूटेड-बूटेड होकर आयोजन में शरीक होने पहुँच गया।
रामस्वरूप धोबी के बच्चे खेलने में तल्लीन हो गए और रामस्वरूप लोगों से बात करने में और गोलगप्पे-चाट का आनंद लेने लगा।
तभी एक महानुभाव ने उससे गुफ़्तगू करनी शुरू कर दी।
“आपकी शक्ल जानी- पहचानी मालूम होती है… आपकी तारीफ़….वैसे आपका कारोबार किया है?”
“मैं आकाश जिंदल…मैं कपड़े की मिलों का मालिक हूँ और अपने काम के चलते हमेशा सुर्ख़ियों में बना रहता हूँ। आपने शायद अख़बारों में मेरी तस्वीरें देखी होंगी। मशहूर उद्योगपति सूरज जिंदल मेरे भाई हैं।”
“आप पार्टियों में कम शिरकत करते हैं क्या?”
“अपने कारोबार के चलते मैं ज़्यादातर विदेश में ही रहता हूँ।”
तभी सूरज जिंदल पार्टी में आ जाते हैं और जब उन्हें पता चलता है कि उनके कोई भाई भी वहाँ मौजूद हैं तो चकित रह जाते हैं क्योंकि वे अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थे। धोबी को देख वह सारा माजरा समझ जाते हैं। स्टेज पर एक कार्यक्रम चल रहा था और सारे मेहमान बैठ कर उसका आनंद ले रहे थे। तभी सूरज जिंदल कार्यक्रम के परिचालक से माइक ले लेते हैं और कहते हैं “ आज हमारे बीच एक ख़ास शख़्सियत मौजूद हैं जिनका नाम है आकाश जिंदल। वे मेरे सगे भाई हैं। मैं चाहूँगा की बड़े भइया जिनके देश- विदेश कारोबार फैले हुए हैं, आपसे आकर अंग्रेज़ी में दो शब्द कहें।”
रामस्वरूप बड़ी दुविधा में पड़ गया। उसे अंग्रेज़ी तो आती न थी।
उसने माइक सँभाला और बोलना शुरू किया- ये सच है कि मैंने आक्सफर्ड से पढ़ाई की है ( आक्सफर्ड नाम का एक नुक्कड़ का स्कूल था जहाँ से वह सातवीं पास था!) पर मैं अपनी मातृ भूमि से, अपनी ज़मीन से जुड़ा हूँ। फिर उसने दो-तीन लाइनें अंग्रेज़ी में भी बोल दी जो उसने अपने बच्चों के मूँह से कभी सुनी थीं। उसने अपने बच्चों को अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल में डाल रखा था। दो तीन लाइनों के बाद वह फिर हिन्दी पर उतर आया।
इतने में भीड से आवाज़ आई-“आपने कपड़े तो ब्रांडेड पहन लिए पर जूते बदलना भूल गए क्या…आपके जूते तो फटे हैं।” लोग हँस पड़े।
धोबी घबरा गया पर फिर भी अपनी बात जारी रखी – “मैंने अपनी ज़िन्दगी एक धोबी के रूप में शुरू की थी और आज यहाँ तक पहुँचा हूँ। जूते ज़मीन से जुड़े होते हैं-वे घिसते हैं, रगड़ते हैं, कटते हैं, फटते हैं और हमें मौसम से, पत्थरों आदि से बचाते हैं। ये जूते मुझे अपनी हक़ीक़त की याद दिलाते हैं कि मैं धोबी था और धोबी ही रहूँगा। मेरे ये फटे पुराने जूते मेरे संघर्ष के दिनों की याद ताज़ा करते हैं और आज इन्हीं की बदौलत मैं यहाँ खड़ा हूँ।
सारा माहौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
सूरज जिंदल बोले- मेरे भइया दरअसल वो नहीं जो दिखते हैं….( धोबी घबराया…) वे उससे भी कहीं बढ़कर हैं। …इंसान नहीं…… महान है…… ये उद्योगपति नहीं……(धोबी फिर घबराया…) ये भूपति हैं..।
माहौल फिर तालियों के बौछार से गूंज उठा।
धोबी की साँस में साँस आई।
सूरज जिंदल ने रामस्वरूप के कर्ण में फुसफुसाया- “तुझे लगता है विदेशी दारू कुछ ज़्यादा ही चढ़ गई… बड़ा अच्छा बोला और मुझे नहीं पता था कि नुक्कड़ के आक्सफर्ड में इतनी अच्छी अंग्रेज़ी भी सिखाते है!”