मैं निष्कपट, अबोध,
जान अधिक पाया नहीं।
यह कपटी संसार,
श्री बिन कछु भाया नहीं।
कह के न मुकर जाए
कर के बातें जो बड़ी ।
मैं गाँव की लैला,
न कोई शहरों की परी।
Continue reading “रोला छंद”
मैं निष्कपट, अबोध,
जान अधिक पाया नहीं।
यह कपटी संसार,
श्री बिन कछु भाया नहीं।
कह के न मुकर जाए
कर के बातें जो बड़ी ।
मैं गाँव की लैला,
न कोई शहरों की परी।