नज़्म Nazm

Urdu Shayari

हालात

लोगों से अक्सर कई दफ़ा

कहते हुए ये सुना गया

कि हो चाहे जैसे हालात

रखना क़ाबू अपने जज़्बात

पर इंसान को इंसान बनाता है

गैरमुकम्मल होनी यदा-कदा

अगर ज्जबात ही न मचलते तो

क्या हो न जाते हम खुदा

दुनियावालों की छोड़ो

ये दुनिया तो पागल है

जो ये सच्ची बात कुबूले

वो इंसान मुकम्मल है

खुद जो पूरे हो नहीं

वो भी क्या कमाल दिखाते हैं

लोग सभी किरदार पे मेरे

लाखों सवाल उठाते हैं

दुनिया वालों की क्या सुनना

जो कहते हैं कहने दो

मैं मौजी अपने मन का

मुझको पागल ही रहने दो

वो तारों वाली रात

तुम नहीं थे

फिर तुम यहीं थे

तुमसे रात पहर होती रही बात

याद आती है मुझको वो तारों रात

चाँद नहीं था

पर चाँद कहीं था

स्याह आसमाँ और तारों की बिसात

याद आती है मुझको वो तारों वाली रात

जगमगाते झिलमिल करते सितारे

टूटते गिरते सितारे

रात भर तारों की होती रही बरसात

याद आती है मुझको वो तारों वाली रात

हवा झूमती, चूमती

बेशुमार तारों की गिनती

हर घड़ी चलता रहा हिसाब

याद आती है मुझको वो तारों वाली रात

डोलते मंजर

बोलते झींगुर

स्याह अंबर और खुला छत

याद आती है मुझको वो तारों वाली रात

रात बड़ी

नींद उड़ी-उड़ी

नींद के लग गए पाँख

याद आती है मुझको वो तारों वाली रात

वो दो आँखें भी तो तारा हैं

जाने क्या करती इशारा हैं

जाने क्या है इनकी दरख्वास्त

याद आती है मुझको वो तारों वाली रात

पवन डोले साँय-साँय

मेरे कानों में आकर फुसफुसाएँ

सन्नाटों से आती रही आवाज़

याद आती है……………….रात

बचपन की नींद से दोस्ती हैं

जवानी मुझे कोसती है

माँ आ कर सर पर फेर दे हाथ

याद………..रात

जमाना मुझपर हँसता है

पर मेरा प्यार सच्चा है

यह कम-जर्फ जमाना छोड़ दे दो मेरा साथ

याद आती है…………….

Nazm

चादर

जब पहाड़ों पर बिछती है बर्फ़ चादर सी

तब तन से आ लिपटती है गर्म चादर सी

कि न रही अब लाज की फ़िकर भी

ऐसी होती है अहसास नर्म चादर की

जब कोई चादर किसी गद्दे पर है जा पड़ती

तब लगती है बिसात उसकी संगेमरमर सी

जब बदलती है वो उसपर करवट सी

तब पड़ती है उसपर रेश्मी सिलवट सी

जब रखती है तकिये पर वो सर अपनी

तब लगती है उसकी ज़ुल्फ़ बादल सी

सोई रहती है वो अंजान बेख़बर सी

न परवाह उसे किसी आहट-सरसराहट की

जब आसमानों पर चाँदनी जाती है बिखर सी

तब याद आती है ग़ज़ल किसी शायर की

शान में क्या कहें उस मक़बूल पेंटर की

जिसने तराशा ये मुकम्मल समा उसके हुनर की

जब चादर ख्वाजा के दर पर है जा पड़ती

तो जैद की तक़दीर जाती है सँवर सी

तब खुल जाती हैं किवाड़ें जन्नत की

और होती है कुबूल धागा-ए-मन्नत भी

Hindi poem

हिन्दी कविता

मुँडेर पर बैठी एक मैना

न जाने क्या चाहती है वो कहना

है बेचैन वो बिलकुल अकेली

नहीं साथ कोई सखा-सहेली

अचानक कहीं से पा गई वो एक तिनका

जिन्हें जोड़ बनाएगी वो घोंसला अपने मनका