गुज़रे कल में औरत ने सँभाला घर
आज दोनों घर और दफ़्तर
दो पाटों के बीच में वो देखो
बँट गई आधी-आधी है
दुनिया वालों तुम ही बतलाओ
ये कैसी आज़ादी है
पिता ने जो डाक्टर-इंजीनियर बनने
का सपना दिखलाया था
पति बोलता माँ- बाप ने
तुमको आख़िर क्या सिखलाया है
आज़ाद मर्द है औरत के तो
सपनों पर भी पाबंदी है
दुनिया वालों तुम ही बतलाओ
ये कैसी आज़ादी है
इल्म और तालीम से
वो तुमसे कदम से कदम मिलाती है
न जाने क्यों वो कदम
चलते हुए कहीं रुक जाती है
वो सूने रास्तों पर चलने से घबराती है
दुनिया वालों………..
……………….. आज़ादी है
नारी सशक्तिकरण के सारे दावे
यहाँ बेमानी हैं
ऐसा लगता है मानो ये
कोई व्यवस्था तालिबानी है
आज भी मातम छा जाता है
जब घर पैदा होती बेटी है
दुनिया वालों……………
…………….. आज़ादी है