वैसे तो शख़्सियत पढ़ने में
मुझको अब हासिल है माहिरी
पर पढ़ भी नहीं सके हम नादाँ
उनके मन की वो बंद डायरी
इतनी किताबें पढ़ कर भी भला
कहाँ आती है दुनियादारी
तुमसे गुज़ारिश है जानाँ तुम
खोल दो वो मन की बंद खिड़की
अपनी दिलकश ज़ुबान पर कयुँ
लगा दी तुमने तालों की पहरी
तुम्हारे यूँ चुप रहने से
वक़्त की क़ज़ा रह जाएँगी ठहरी
इतना दिल में दबा के रखोगे
तो हों जाएँगी मुसीबतें बड़ी
खोल दो दिल के राज वो गहरे
बोल पड़ी है सूनी देहरी
अब तो ये मौन व्रत तोड़ दो
कि आज होगी अंतिम सहरी