तुम नहीं थे
फिर तुम यहीं थे
तुमसे रात पहर होती रही बात
याद आती है मुझको वो तारों रात
चाँद नहीं था
पर चाँद कहीं था
स्याह आसमाँ और तारों की बिसात
याद आती है मुझको वो तारों वाली रात
जगमगाते झिलमिल करते सितारे
टूटते गिरते सितारे
रात भर तारों की होती रही बरसात
याद आती है मुझको वो तारों वाली रात
हवा झूमती, चूमती
बेशुमार तारों की गिनती
हर घड़ी चलता रहा हिसाब
याद आती है मुझको वो तारों वाली रात
डोलते मंजर
बोलते झींगुर
स्याह अंबर और खुला छत
याद आती है मुझको वो तारों वाली रात
रात बड़ी
नींद उड़ी-उड़ी
नींद के लग गए पाँख
याद आती है मुझको वो तारों वाली रात
वो दो आँखें भी तो तारा हैं
जाने क्या करती इशारा हैं
जाने क्या है इनकी दरख्वास्त
याद आती है मुझको वो तारों वाली रात
पवन डोले साँय-साँय
मेरे कानों में आकर फुसफुसाएँ
सन्नाटों से आती रही आवाज़
याद आती है……………….रात
बचपन की नींद से दोस्ती हैं
जवानी मुझे कोसती है
माँ आ कर सर पर फेर दे हाथ
याद………..रात
जमाना मुझपर हँसता है
पर मेरा प्यार सच्चा है
यह कम-जर्फ जमाना छोड़ दे दो मेरा साथ
याद आती है…………….